कौन थे मौलाना हसरत मोहानी
1947 में मौलाना हसरत मोहानी से किसी ने पूछा के आप पाकिस्तान क्यों चले नहीं जाते ? एक हसरत भरे लहजे में ठंडी सांस लेकर बोले:
दोनो जगह जज़्बाती जनूनियत का दौर दौरा है ओर अपनी तो हर दो जगह जान खतरे में रहेगी, यहां रहे तो जाने कब कोई हिन्दू इंतिहा पसंद ,मुसलमान, कह कर मार डाले पाकिस्तान में यही कुछ किसी जोशीले मुसलमान के हाथो हो सकता हे लेकिन वो मुझे "गुस्ताख" या "काफिर" कह कर मारेगा मैं समझता हूं भारत में रह कर मुसलमान की मौत मरना बेहतर है पाकिस्तान में रह कर "काफिर" की मौत मरने से
मेरे प्यारे वतन वालो ये मौलाना हसरत मोहानी कौन हैं?
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इंक़लाब ज़िन्दाबाद हिन्दुस्तानी भाषा का नारा है, जिसका अर्थ है 'क्रांति की जय हो'। इस नारे को भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने दिल्ली की असेंबली में 8 अप्रेल 1929 को एक आवाज़ी बम फोड़ते वक़्त बुलंद किया था। यह नारा मशहूर शायर हसरत मोहानी ने एक जलसे में, आज़ादी-ए-कामिल की बात करते हुए दिया था। ओर आज हमसे ये कहा जाता है के हम पाकिस्तान चले जाए, तो सुनो ये देश हमारा है यहां हमारे बुजुर्गो का खून शामिल है अगर मुसलमानों से इतना ही डर लगता है तो वो इस भारत देश को छोड़ कर चले जाए हम पैदा भी इसी सर जमीन पर हुए ओर दफन भी यही होगे,
कॉपी, मौलाना मुहम्मद आसिफ उमर
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